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राही आराम कर ले

लंबी  यात्रा   करके.............थक  गये,
राही  तनिक आराम  .........कर ले!
जग के कोलाहल से हो गये .....भ्रमित,
राही  मौन का .......निःस्वास ले ले।

मोह  के  इस तीक्ष्ण ताप से परे हट जा,
वैराग्य  के वटवृक्ष  तलेे ठंडी छांव ले ले।
जगत ये असत्य है, ईश्वर शाश्वत सत्य  है !
इस तथ्य को राही आत्मसात कर ले।

बहुत संग्रह कर लिया,तुमने इस जीवन में,
सब यहीं रह जाना है, तू यह सार  गह ले।
तेरा -मेरा करते-करते ये जीवन बीत गया।
अपने लिये राही!  एक सीधी राह चुन ले।

जिन रिश्तो को .......अपना समझते थे,
वह सारे भ्रम थे तेरे .........यह मान ले।
एक रिश्ता ही चिर सत्य  .. . ... ..... है।
इस बात को सहज ......स्वीकार कर ले।

मृत्यु  से  भयभीत इतने  ..दिख रहे क्यों ?
जग मे तुम  थे ..संप्रभुता का वर्चस्व  लिए,
कोई न दिखता था, श्रेष्ठ स्वयं के   सामने।
सर्वश्रेष्ठ के समक्ष  राही नतमस्तक हो ले।

तुम अकेले आए थे और अकेले  जाओगे ,
पुण्य पापों  की गठरी को अपने साथ ले ले।
अन्तिम समय मे ईष्ट का अपने ध्यान करके,
ज्ञान की चिर ज्योति जला प्रकाशवान हो ले।

बलवती कितनी है तेरी  यह जिजीविषा।
त्यागते  तुम क्यों नहीं! अपनी मृगतृष्णा।
माया के अंधे जालों  को, आंखों  से हटा,
कर्मों का लेखा जोखा इसके साथ कर ले।

क्यों भटकता है राही! प्रवंचना की नगरी में,
दिन   का  चैन और रातों   की नींद  गँवा के ,
भगवत भजन कर कुछ मन को आराम दे दे!
ज्ञान चक्षु खोल  ईश का अपने ध्यान धर ले।

स्नेहलता पाण्डेय \\\\\'स्नेह\\\\\'
नईदिल्ली


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3 Comments

Seema Priyadarshini sahay

18-Nov-2021 08:24 PM

अत्यंत खूबसूरत रचना

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Renu Singh"Radhe "

18-Nov-2021 11:35 AM

बहुत खूब

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Swati chourasia

17-Nov-2021 11:03 PM

Very beautiful 👌

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